मुकद्दर की लिखावट

मुकद्दर की लिखावट का इक ऐसा भी कायदा हो,
देर से क़िस्मत खुलने वालों का दुगुना फ़ायदा हो।
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मैं नासमझ ही सही मगर वो तारा हूँ जो,
तेरी एक ख्वाहिश के लिए सौ बार टूट जाऊं।
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क्यों उलझता रहता है तू लोगो से फराज.
ये जरूरी तो नहीं वो चेहरा सभी को प्यारा लगे।
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वो पहले सा कहीं, मुझको कोई मंज़र नहीं लगता,
यहाँ लोगों को देखो, अब ख़ुदा का डर नहीं लगता।

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