ख्वाब आँखों में

ख्वाब आँखों में जितने पाले थे,
टूट कर के बिखर ने वाले थे।

जिनको हमने था पाक दिल समझा,
उन्हीं लोगों के कर्म काले थे।

पेड़ होंगे जवां तो देंगे फल,
सोच कर के यही तो पाले थे।

सबने भर पेट खा लिया खाना,
माँ की थाली में कुछ निवाले थे।

आज सब चिट्ठियां जला दी वो,
जिनमें यादें तेरी संभाले थे।

हाल दिल का सुना नहीं पाये,
मुँह पे मजबूरियों के ताले थे।

- अभिषेक कुमार अम्बर

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