Aah Bhar Nahi Saka

महफिल से उठकर तो कब के चले गये थे वो,
फिर भी उनकी महक फैली रही देर तक।

दीदार ए हुस्न से ही मिलती थी दिल को ठंडक,
फिर भी चेहरा छुपाते रहे वो आज देर तक।

भूल जाता था जो दिल देख कर उनको धड़कना,
जाने क्यों बिना देखे ही उनको आज धड़का है देर तक।

दिल टूटने की आवाज तो दिल मे ही दबकर रही,
जाने क्यों वहाँ इक सन्नाटा फैला रहा देर तक।

जलने को तो सभी दोस्त ही मुझसे जलते रहे,
देखा जो उनका हाथ मेरे हाथ में रखा देर तक।

ना शिकवा रहा ना ही कोई शिकायत रही,
जब होती रही उनसे रात गुफ्तगू देर तक।

बारिश से कह दो कि वह फिर कभी बरसे,
आज आँसुओं ने बरसने कि ठानी है देर तक।

चोट खाकर भी आह भर नहीं सका 'विनोद'
देखा जो उनका चेहरा मुस्कुराता देर तक।

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