ग़ालिब की उर्दू शायरी तुम न आए

तुम न आए तो क्या सहर न हुई,
हाँ मगर चैन से बसर न हुई,
मेरा नाला सुना ज़माने ने,
एक तुम हो जिसे ख़बर न हुई।
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बूए-गुल, नाला-ए-दिल, दूदे चिराग़े महफ़िल,
जो तेरी बज़्म से निकला सो परीशाँ निकला।
चन्द तसवीरें-बुताँ चन्द हसीनों के ख़ुतूत,
बाद मरने के मेरे घर से यह सामाँ निकला।
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हासिल से हाथ धो बैठ ऐ आरज़ू-ख़िरामी,
दिल जोश-ए-गिर्या में है डूबी हुई असामी,
उस शम्अ की तरह से जिस को कोई बुझा दे,
मैं भी जले-हुओं में हूँ दाग़-ए-ना-तमामी।

सहर = सुबह, बसर = गुजरना, नाला = शिकवा

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