दो लाइन शायरी कमाल का जिगर

कमाल का जिगर रखते है कुछ लोग,
दर्द पढ़ते है और आह तक नहीं करते।
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ना मैं शायर हूँ ना मेरा शायरी से कोई वास्ता,
बस शौक बन गया है, तेरे जलवों को बयान करना।
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मुस्कुरा देता हूँ अक्सर देखकर पुराने खत तेरे,
तू झूठ भी कितनी ईमानदारी से लिखती थी।
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एक उमर बीत चली है तुझे चाहते हुए,
तू आज भी बेखबर है कल की तरह।
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तेरी गली में आकर के खो गये हैं दोंनो,
मैं दिल को ढ़ूँढ़ता हुँ दिल तुमको ढ़ूँढ़ता है।

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