गरीबी शायरी

Roshani Kachche Gharon Tak

वो जिसकी रोशनी
कच्चे घरों तक भी पहुँचती है,
न वो सूरज निकलता है
न अपने दिन बदलते हैं।

Wo Jiski Roshani
Kachche Gharon Tak Bhi Pahunchti Hai,
Na Wo Sooraj Nikalta Hai,
Na Apne Din Badalte Hain.

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वो राम की खिचड़ी

वो राम की खिचड़ी भी खाता है,
रहीम की खीर भी खाता है,
वो भूखा है जनाब उसे,
कहाँ मजहब समझ आता है।

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गरीबों की औकात ना पूछो

गरीबों की औकात ना पूछो तो अच्छा है,
इनकी कोई जात ना पूछो तो अच्छा है,
चेहरे कई बेनकाब हो जायेंगे,
ऐसी कोई बात ना पूछो तो अच्छा है।

खिलौना समझ कर खेलते जो रिश्तों से,
उनके निजी जज्बात ना पूछो तो अच्छा है,
बाढ़ के पानी में बह गए छप्पर जिनके,
कैसे गुजारी रात ना पूछो तो अच्छा है।

भूख ने निचोड़ कर रख दिया है जिन्हें,
उनके तो हालात ना पूछो तो अच्छा है,
मज़बूरी में जिनकी लाज लगी दांव पर,
क्या लाई सौगात ना पूछो तो अच्छा है।

गरीबों की औकात ना पूछो तो अच्छा है,
इनकी कोई जात ना पूछो तो अच्छा है।

Gareebi Mein Rishta

Hajaaro Dost Ban Jaate Hain
Jab Paisa Paas Hota Hai,
Toot Jata Hai Gareebi Mein
Jo Rishta Khaas Hota Hai.

हजारों दोस्त बन जाते है, जब पैसा पास होता है,
टूट जाता है गरीबी में, जो रिश्ता ख़ास होता है।

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