हिंदी उर्दू ग़ज़ल

लश्कर नहीं देखे जाते

भीगती आँखों के मंज़र नहीं देखे जाते,
हम से अब इतने समुंदर नहीं देखे जाते।

उस से मिलना है तो फिर सादा-मिज़ाजी से मिलो,
आईने भेस बदल कर नहीं देखे जाते।

वज़'-दारी तो बुज़ुर्गों की अमानत है मगर,
अब ये बिकते हुए ज़ेवर नहीं देखे जाते।

ज़िंदा रहना है तो हालात से डरना कैसा,
जंग लाज़िम हो तो लश्कर नहीं देखे जाते।

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Har Ek Chehre Par Muskan

हर एक चेहरे पर मुस्कान मत खोजो,
किसी के नसीब का अंजाम मत खोजो।

डूब चुका है जो गंदगी के दलदल में,
रहने दो यारो उसमें ईमान मत खोजो।

फंस गया है जो मजबूरियों की क़ैद में,
उसके दिल में दबे अरमान मत खोजो।

जो पराया था आज अपना है तो अच्छा,
उसमें अब वो पुराने इल्ज़ाम मत खोजो।

आदमी बस आदमी है इतना समझ लो,
हर किसी में अपना भगवान मत खोजो।

ये इंसान तो ऐबों का खज़ाना है "मिश्र",
उसके दिल से कोई, रहमान मत खोजो।

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Dard Humko Dene Lage

जिसको दिल में बसाया हमने वो दूर हमसे रहने लगे,
जिनको अपना माना हमने वो पराया हमको कहने लगे।

जो बने कभी हमदर्द हमारे वो दर्द हमको देने लगे,
जब लगी आग मेरे घर में तो पत्ते भी हवा देने लगे।

जिनसे की वफ़ा हमने वो बेवफा हमको कहने लगे,
जिनको दिया मरहम हमने वो जखम हमको देने लगे।

बचकर निकलता था काँटों से मगर फूल भी जखम देने लगे,
जब लगी आग मेरे घर में तो पत्ते भी हवा देने लगे।

बनायीं जिनकी तस्वीर हमने अब चेहरा वो बदलने लगे,
जो रहते थे दिल में मेरे अब महलों में जाकर रहने लगे।

ख्वाब आँखों में

ख्वाब आँखों में जितने पाले थे,
टूट कर के बिखर ने वाले थे।

जिनको हमने था पाक दिल समझा,
उन्हीं लोगों के कर्म काले थे।

पेड़ होंगे जवां तो देंगे फल,
सोच कर के यही तो पाले थे।

सबने भर पेट खा लिया खाना,
माँ की थाली में कुछ निवाले थे।

आज सब चिट्ठियां जला दी वो,
जिनमें यादें तेरी संभाले थे।

हाल दिल का सुना नहीं पाये,
मुँह पे मजबूरियों के ताले थे।

- अभिषेक कुमार अम्बर

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उसे चांदनी कहेंगे

कभी दोस्ती कहेंगे कभी बेरुख़ी कहेंगे,
जो मिलेगा कोई तुझसा उसे ज़िन्दगी कहेंगे।

तेरा देखना है जादू तेरी गुफ़्तगू है खुशबू,
जो तेरी तरह चमके उसे रोशनी कहेंगे।

नए रास्ते पे चलना है सफ़र की शर्त वरना,
तेरे साथ चलने वाले तुझे अजनबी कहेंगे।

है उदास शाम राशिद नहीं आज कोई क़ासिद,
जो पयाम उसका लाए उसे चांदनी कहेंगे।

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तक़रार क्या करूं

जो कुछ कहो क़ुबूल है तक़रार क्या करूं,
शर्मिंदा अब तुम्हें सर-ए-बाज़ार क्या करूं,

मालूम है की प्यार खुला आसमान है,
छूटते नहीं हैं ये दर-ओ-दीवार क्या करूं,

इस हाल मे भी सांस लिये जा रहा हूँ मैं,
जाता नहीं हैं आस का आज़ार क्या करूं,

फिर एक बार वो रुख-ए-मासूम देखता,
खुलती नहीं है चश्म-ए-गुनाहगार क्या करूं,

ये पुर-सुकून सुबह ये मैं ये फ़ज़ा शऊर,
वो सो रहे हैं अब उन्हें बेदार क्या करूं।

Log Har Mod Pe

Log Har Mod Pe Ruk-Ruk Ke Sambhalte Kyun Hain,
Itna Darrte Hain Toh Ghar Se Nikalte Kyun Hain.

Main Na Jugnoo Hoon, Diya Hoon, Na Koi Taara Hoon,
Roshni Wale Mere Naam Se Jalte Kyun Hain.

Neend Se Mera Talluq Hi Nahi Barson Se,
Khwaab Aa Aa Ke Meri Chhat Pe Tahalte Kyun Hain.


Mod Hota Hai Jawani Ka Smbhalne Ke Liye,
Aur Sab Log Yahin Aa Ke Fisalte Kyun Hain.

लोग हर मोड़ पे रुक-रुक के संभलते क्यों हैं,
इतना डरते हैं तो फिर घर से निकलते क्यों हैं,

मैं न जुगनू हूँ, दिया हूँ न कोई तारा हूँ,
रोशनी वाले मेरे नाम से जलते क्यों हैं,

नींद से मेरा ताल्लुक़ ही नहीं बरसों से,
ख्वाब आ आ के मेरी छत पे टहलते क्यों हैं,

मोड़ होता है जवानी का संभलने के लिए,
और सब लोग यहीं आके फिसलते क्यों हैं।

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Labon Pe Gulaab Rakhte Hain

Dilon Mein Aag Labon Pe Gulaab Rakhte Hain,
Sab Apne Chehron Pe Dohre Naqaab Rakhte Hain.

Humein Chirag Samajh Kar Bujha Na Paaoge,
Hum Apne Ghar Mein Kayi Aaftaab Rakhte Hain.

Bahut Se Log Ke Jo Harf-Aashna Bhi Nahi,
Isee Mein Khush Hain Ke Teri Kitaab Rakhte Hain,

Ye Maiqada Hai, Wo Masjid Hai, Wo Hai But-Khana,
Kahin Bhi Jaao Farishte Hisaab Rakhte Hain.

Humare Shahar Ke Manjar Na Dekh Payenge,
Yahan Ke Log Aankhon Mein Khwab Rakhte Hain.

दिलों में आग लबों पर गुलाब रखते हैं,
सब अपने चेहरों पे दोहरी नका़ब रखते हैं,

हमें चराग समझ कर बुझा न पाओगे,
हम अपने घर में कई आफ़ताब रखते हैं,

बहुत से लोग कि जो हर्फ़-आश्ना भी नहीं,
इसी में खुश हैं कि तेरी किताब रखते हैं,

ये मैकदा है, वो मस्जिद है, वो है बुत-खाना,
कहीं भी जाओ फ़रिश्ते हिसाब रखते हैं,

हमारे शहर के मंजर न देख पायेंगे,
यहाँ के लोग तो आँखों में ख्वाब रखते हैं।