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Wo Chirag Jo Raat Bhar

वो चराग़ जो रात भर सफ़र में होगा,
नहीं सोचता क्या उसका सहर में होगा।

अज़ब चुप सी लगी है तमाम चेहरों पे,
न जाने कौन सा हादसा अब शहर में होगा।

परिंदे को चहकने में अभी वक़्त लगेगा,
कफ़स तो टूट गया है अभी वो डर में होगा।

मेरे घर का हर कोना जवाब माँगता है,
इस दफा इम्तिहान तेरे घर में होगा।

यूँ ही नहीं वो जिगर के पार उतर गया,
कुछ तो इज़्तराब उस खंज़र में होगा।

देखना सुरंग के उस पार फिर पहुँच जायेगा,
इक क़तरा रौशनी का फिर नज़र में होगा।

~ राकेश कुशवाहा

Sirf Deewaron Ka Na Ho

सिर्फ दीवारों का ना हो घर कोई,
चलो ढूंढते है नया शहर कोई।

फिसलती जाती है रेत पैरों तले,
इम्तहाँ ले रहा है समंदर कोई।

काँटों के साथ भी फूल मुस्कुराते है,
मुझको भी सिखा दे ये हुनर कोई।

लोग अच्छे है फिर भी फासला रखना,
मीठा भी हो सकता है जहर कोई।

परिंदे खुद ही छू लेते हैं आसमाँ,
नहीं देता हैं उन्हें पर कोई।

हो गया हैं आसमाँ कितना खाली,
लगता हैं गिर गया हैं शज़र कोई।

हर्फ़ ज़िन्दगी के लिखना तो इस तरह,
पलटे बिना ही पन्ने पढ़ ले हर कोई।

कब तक बुलाते रहेंगे ये रस्ते मुझे,
ख़त्म क्यों नहीं होता सफर कोई।

~राकेश कुशवाहा