Gulzar Shayari

एक पुराना मौसम

एक पुराना मौसम लौटा याद भरी पुरवाई भी,
ऐसा तो कम ही होता है वो भी हो तनहाई भी।

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तेरी चाहत में अक्सर

तुम्हे जो याद करता हुँ, मै दुनिया भूल जाता हूँ ।
तेरी चाहत में अक्सर, सभँलना भूल जाता हूँ ।।

तुम्ही से प्यार करता हूँ, तुम्ही पे जान देता हूँ ।
फिर भी न जाने क्युँ मैं, ये कहना भूल जाता हूँ ।।

तेरे स्पर्श से ही रिचाये अवतरित होती ।
परन्तु मैं उन्हे वेदो में, गढ़ना भूल जाता हूँ ।।

मुझे बस याद रहते हैं, तेरे वो प्रेम के चुम्बन ।
मगर मैं फिर उन्हे, होठो पे लाना भूल जाता हूँ ।।

याद हैं तेरा शहर, वो मदमस्त अल्लड़ चाल भी ।
न जाने क्यों तेरा, हंस कर पलटना भूल जाता हूँ ।।

मेरी स्मृति में छपी हो तुम, तरंगे वायु की बन के ।
तेरी मोहिनी पे मैं, तुझे भी भूल जाता हूँ ।।

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