Shanti Swaroop Mishra Shayari

Aakhir Saanson Ka Saath

आखिर सांसों का साथ, कब तक रहेगा,
किसी का हाथों में हाथ, कब तक रहेगा।

बस यूं ही डूबते रहेंगे चाँद और सूरज तो,
आखिर रोशनी का साथ, कब तक रहेगा।

अगर जीना है तो चलना पड़ेगा अकेले ही,
आखिर रहबरों का साथ, कब तक रहेगा।

न करिये काम ऐसे कि डूब जाये नाम ही,
आखिर सौहरतों का साथ, कब तक रहेगा।

कभी तो ज़रूर महकेगा उल्फत का चमन,
आखिर ख़िज़ाओं का साथ, कब तक रहेगा।

तुम भी खोज लो मिश्र ख़ुशी के अल्फ़ाज़,
आखिर रोने-धोने का साथ, कब तक रहेगा।

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Bekaar Apne Waqt Ko

बेकार अपने वक़्त को, गंवाया मत करिये
हर जगह अपनी टांग, फंसाया मत करिये।

कोई भी किसी से कम नहीं है आज कल,
बेसबब किसी पे धौंस, जमाया मत करिये।

ख़ुराफ़ातों से न मिला है न मिलेगा कुछ भी,
यूं हर वक़्त टेढ़ी चाल, दिखाया मत करिये।

ये ज़िन्दगी है यारो इसे मोहब्बत से जीयो,
इसमें नफ़रतों का पानी, चढ़ाया मत करिये।

गर उलझन है अपनों से तो सुलझाइये खुद,
मगर शोर घर से बाहर, मचाया मत करिये।

अब तो न बचा है कोई भी भरोसे के लायक,
किसी को दिल की बात, बताया मत करिये।

ज़िन्दगी का मसला कोई खेल नहीं है मिश्र,
कभी बेवजह इसको, उलझाया मत करिये।

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Kya Milega

किसी के ज़ख्मों को, दुखा कर क्या मिलेगा,
किसी के सपनों को, मिटा कर क्या मिलेगा।

यारा भर चुके हो जब अँधेरे दिलों के अंदर,
तो फिर इन दीयों को, जला कर क्या मिलेगा।

खो दिया जब तुमने ईमान ही अपना दोस्त,
फिर यूं झूठी कहानी, सुना कर क्या मिलेगा।

बसा रखा है जब मैल ही मैल अपने दिल में,
तो फिर मोहब्बतों को, जता कर क्या मिलेगा।

जो खुद ही घिरे हैं अपने कुकर्मों के भंवर में,
तो भला हाथ ऐसों को, थमा कर क्या मिलेगा।

ख़ुदा तो जानता है हर किसी को अंदर तक,
तो फिर उससे भी, मुंह छुपा कर क्या मिलेगा।

यारो न कर सको किसी का भला तो अच्छा,
पर किसी को यूं बकरा, बना कर क्या मिलेगा।

छोड़ दो ये दुनिया बस यही बेहतर है मिश्र,
यूं ही अकारण दिल को, सता कर क्या मिलेगा।

Mere Khwabo Ka Bharam

मेरे ख्वाबों का यारो, कुछ भरम तो रहने दो
लूट लो सब कुछ, ईमानो धरम तो रहने दो।

खंडहरों को देख कर न उड़ाइये मेरी खिल्ली,
मुझको मेरे वजूद का, कुछ वहम तो रहने दो।

मोहब्बत मेरी दौलत है बस इतना समझ लो,
इस मुफ़लिसी का क्या, कुछ अहम तो रहने दो।

जानें क्यों कुचलते हैं लोग किसी के जज़्बों को,
इंसानियत के नाम पर, कुछ शरम तो रहने दो।

ये वक़्त भी गुज़र जायेगा बस देखते देखते पर,
उठाने के वास्ते ये नज़र, कुछ करम तो रहने दो।

किसी की इज़्ज़त से भी इतना न खेलिए मिश्र,
अपनी तीखी जुबान को, कुछ नरम तो रहने दो।

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Aisi Hai Ye Duniya

बड़ी ख़ुदग़र्ज़, बड़ी फ़ितरती है दुनिया,
नफ़रतों के खम्बों पर टिकी है दुनिया।

किसी को ग़म नहीं धेले भर किसी का,
ये बड़ी ही बेरहम और बेरुखी है दुनिया।

अब तो जीते हैं लोग बस अपने लिए ही,
यारो औरों के लिए मर चुकी है दुनिया।

न रहे ज़िंदा अब तो बेमक़सद के रिश्ते,
अब मतलब की दोस्ती करती है दुनिया।

देते हैं जो छांव धूप में जल कर भी यारो,
फर्सा उन्हीं की जड़ पे पटकती है दुनिया।

अफसोस होता है देख कर दो रंग इसके,
कहीं हँसती तो कहीं सिसकती है दुनिया।

लोग ख़ैरियत पूछने में देखते हैं हैसियत,
कैसे पल-पल में देखो, बदलती है दुनिया।

ये कैसा उल्टा कानून है खुदा का "मिश्र"
कि जो मारते हैं उन्हीं पे मरती है दुनिया।

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Apni Zindagi Tamaam Kar Di

हमने तो अपनी ज़िन्दगी तमाम कर दी,
अपनी तो हर साँस उनके नाम कर दी।

सोचा था कि कभी तो गुजरेगी रात काली,
पर उसने तो सुबह होते ही शाम कर दी।

समझ पाते हम मोहब्बत की सरगम को,
उसने सुरों की महफ़िल सुनसान कर दी।

कर लिया यक़ीन हमने भी उसके वादों पे,
मगर उसने तो बेरुखी हमारे नाम कर दी।

हम मनाते रहे ग़म अपनी मात पर चुपचाप,
मगर उसने तो मेरी चर्चा सरे-आम कर दी।

ये खुदगर्ज़ी ही आदमी की दुश्मन है "मिश्र",
जिसने इंसान की नीयत ही नीलाम कर दी।

Chupchap Dasaa Karte Hain

लोगों के दिल कहाँ, अब तो होंठ हँसा करते हैं,
खुशियों की जगह अब, कोहराम बसा करते हैं!

भला वो बात अब कहाँ जो कभी पहले थी यारो,
लोग उल्फ़त नहीं अब, नफ़रत का नशा करते हैं!

जिधर नज़र जाती है दिखती हैं मक्कारियां उधर,
यहाँ दाग़ियों के बदले अब, बेदाग़ फंसा करते हैं!

न होइए खुश इतना पाकर हमदर्दियां किसी की,
यही वो मेहरवां हैं जो, कहीं भी तंज कसा करते हैं!

न पिलाओ दूध उनको कभी अपने न होंगे "मिश्र",
यही तो ताक कर अवसर, चुपचाप डसा करते हैं!

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Log Samajh Lete Hain

अंधेरों को भी लोग, उजाला समझ लेते हैं,
शातिरों को वो, अपना सहारा समझ लेते हैं।

मैं आज तक न समझ पाया खुद को यारो,
लोग हैं कि खुद को, क्या क्या समझ लेते हैं।

क़त्ल करते हैं बड़ी ही मासूमियत से वो,
पर लोग हैं कि उनको बेचारा समझ लेते हैं।

थमा रखी है पतवार फरेबियों के हाथों में,
लोग हैं कि भंवर को, किनारा समझ लेते हैं।

कपट की चाल ही तोड़ती है रिश्तों को "मिश्र",
लोग तो इसको ही, अपनी अदा समझ लेते हैं।