Hakeeqat Bhi Yahin Hai

हकीक़त भी यहीं है और है फ़साना भी,
मुश्किल है किसी का साथ निभाना भी।

यूँ ही नहीं कुछ रिश्ते पाक होते हैं,
पल में रूठ जाना भी पल में मान जाना भी।

लिहाज़ नहीं दिखता की हो बेग़ैरत तुम,
लाज़िम है किसी एक वक़्त में शरमाना भी।

मोहब्बत हो शहर में इश्क़ हर दिल में हो,
जरूरी है दीवानी भी जरूरी है दीवाना भी।

जरा सा सोच-समझ के करना बातें आपस में,
होने लगे हैं आजकल के बच्चे सयाना भी।

झूठ और सच बता सकता हूँ तेरे चेहरे से,
आया अब तक नहीं एक राज़ छुपाना भी।

- प्रभाकर "प्रभू"

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