Aisa Gam De Gaya

हर शरारत को जिसकी था माना मोहब्बत,
कोई बनाके यूँ अपना ज़हर दे गया,
सितम ऐसा जमाने में कोई और नहीं,
वो होकर जुदा ऐसा ग़म दे गया।

बहारों से लड़ा था मैं जिसके लिए,
वो उजड़ा सा मुझको चमन दे गया,
मुझे रहना नहीं अब एक पल भी यहाँ,
वो ज़ख्मों से भरा एक शहर दे गया।
~बलराम सिंह

Aisa Gam De Gaya Shayari

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