Zakhm Bhar Gaye

भर गए हैं अब वो ज़ख्म,
जो तूने कभी दिए थे,
लेकिन हैं याद अभी भी वो वादे,
जो तूने कभी किये थे.

वक़्त गुजर गया लम्हे गुजर गए,
हम चुपचाप ये ख़ामोशी सह गए,
तुम कहाँ से कहाँ,
और हम वहीं रह गए.

रह गए तेरे वादों के दरमियाँ,
और ज़िन्दगी यूँ ही गुजरती रही,
जश्न-ए-ख़ामोशी में,
हर रात सुलगती रही.

सुलग गए मेरे अरमान भी,
जूनून-ए-मोहब्बत में कभी किये थे,
भर गए हैं अब वो ज़ख्म,
जो तूने कभी दिए थे.

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