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हिंदी शायरी
मेरी ये बेचैनियाँ
मेरी ये बेचैनियाँ... और उन का कहना नाज़ से,
हँस के तुम से बोल तो लेते हैं और हम क्या करें।
तबस्सुम भी हया भी
इश्वा भी है शोख़ी भी तबस्सुम भी हया भी,
ज़ालिम में और इक बात है इस सब के सिवा भी।
दिन हुआ है तो
दिन हुआ है तो रात भी होगी,
हो मत उदास कभी बात भी होगी,
इतने प्यार से दोस्ती की है,
जिन्दगी रही तो मुलाकात भी होगी.
जब भी करीब
जब भी करीब आता हूँ बताने के किये,
जिंदगी दूर रखती हैं सताने के लिये,
महफ़िलों की शान न समझना मुझे,
मैं तो अक्सर हँसता हूँ गम छुपाने के लिये.
जीत किसके लिए
जीत किसके लिए हार किसके लिए,
ज़िंदगी भर ये तकरार किसके लिए,
जो भी आया है वो जायेगा एक दिन,
फिर ये इतना अहंकार किसके लिए।
जो नजर से गुजर
जो नजर से गुजर जाया करते हैं,
वो सितारे अक्सर टूट जाया करते हैं,
कुछ लोग दर्द को बयां नहीं होने देते,
बस चुपचाप बिखर जाया करते हैं।
साल पुराना लगता है
वैसे ही दिन वैसी ही रातें हैं,
वही रोज का फ़साना लगता है,
अभी महीना भी नहीं गुजरा और
यह साल अभी से पुराना लगता है।
कब का भुला दिया
प्यार ने ये कैसा तोहफा दे दिया,
मुझको ग़मों ने पत्थर बना दिया,
तेरी यादों में ही कट गयी ये उम्र,
कहता रहा तुझे कब का भुला दिया।