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वो लम्हे जहर से

मैं घर का रास्ता भूला, जो निकला आपके शहर से,
इमारत दिल की ढह गई, आपके हुस्न के कहर से,
खुदा माना, आप न माने, वो लम्हे गए यूँ ठहर से,
वो लम्हे याद करता हूँ तो लगते हैं अब जहर से।
~ किशन कुमार झा

गहरे राज़ मेरे

दुनिया को लगते हैं बुरे अंदाज मेरे,
लोग कहाँ जानते हैं गहरे राज़ मेरे।

सब जानते हुए भी, क्या कमाल पूछते हो,
मुझे क़त्ल करके मेरा हाल पूछते हो।

कि पता पूछ रहा हूँ मेरे सपने कहाँ मिलेंगे?
जो कल तक साथ थे मेरे अपने कहाँ मिलेंगे?

ये जो हर शायर का हाल है,
मोहब्बत की ही तो मिसाल है।

कुछ बदल जाते हैं, कुछ मजबूर हो जाते हैं,
बस यूं लोग एक-दूसरे से दूर हो जाते हैं।
~ किशन कुमार झा