Search Results for : जाफर

मिट गई दुनिया हमारी

मिट गई दुनिया हमारी आसरा कोई नहीं,
बाँट ली खुशियॉ सभी ने ग़म बाँटता कोई नहीं।

बीच अपनों के भी रहकर लग रहा है ये मुझे,
अजनबी हूँ इस शहर में जानता कोई नहीं।

कैसे रिश्तेदार हैं ये कैसी है ये दोस्ती,
दौरे मुश्किल में हमारे काम आता कोई नहीं।

चैन दिन को है न रातों को सुकूं पाते हैं हम,
दर्द से फिर भी हमारे आशना कोई नहीं।

यूं तो सब हमदर्द हैं और हमनवा भी हैं मगर,
साथ गुरबत में जो दे दे ऐसा मेरा कोई नहीं।

मंजिले-राहत प पहुंचू किस तरह तू ही बता,
रहगुज़र है और मैं हूँ कारवॉ कोई नहीं।

जा के किसको हम सुनाए हाले-दिल तू ही बता,
सुनने वाला ग़म की मेरे दास्तॉ कोई नहीं।

ग़म के साये में है गुज़री उम्र भर ये ज़िंदगी,
दर्द की मेरे खुदाया क्या दवा कोई नहीं।

खा रहा है ठोकरे जाफर तन्हा परदेस में,
रहबरी करने को मेरी राहनुमा कोई नहीं।

Pyar Ka Ye Silsila

शुरू जो प्यार का ये सिलसिला नहीं होता,
ये रोग दिल को हमारे लगा नहीं होता।

मैं चाहता हूँ के एक पल को भूल जाऊं उसे,
मगर ख्याल है उनका जुदा नहीं होता।

कभी के मौत की बाँहों में सो गए होते,
हराम गर इसे मअबूत ने किया नहीं होता।

खुशी से ज़िंदगी अपनी भी काट गई होती,
वफ़ा के नाम पे धोखा अगर मिला नहीं होता।

वो कब्र पे मेरी दो अश्क ही बहा देते,
कसम खुदा की हमें फिर गिला नहीं होता।

कुछ और उनकी भी मजबूरियां रही होंगी,
यूँ ही तो कोई सनम बेवफा नहीं होता।

वो इस तरह से भुलाते ही क्यों हमें जाफर,
ख़राब गर ये मुक़द्दर मेरा नहीं होता।

-जाफर बिजनौरी