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वो अजब शख्स था

वो अजब शख्स था ऐ ज़िन्दगी
जिसे मैं न समझ सका,
मुझे चाहता भी गज़ब का था
मुझे छोड़ कर भी चला गया।

Wo Ajab Shakhs Tha Ai Zindagi,
Jise Main Na Samajh Saka,
Mujhe Chahta Bhi Gazab Ka Tha,
Mujhe Chhod Kar Bhi Chala Gaya.

Main Aakhiri Ban Kar Raha

मौत की वीरानियों में ज़िन्दगी बन कर रहा,
वो खुदाओं के शहर में आदमी बन कर रहा।

ज़िन्दगी से दोस्ती का ये सिला उसको मिला,
ज़िन्दगी भर दोस्तों में अजनबी बन कर रहा।

उसकी दुनिया का अंधेरा सोचकर तो देखिए,
वो जो अंधों की गली में रौशनी बन कर रहा।

सनसनी के सौदेबाज़ों से लड़ा जो उम्र भर,
हश्र ये खुद एक दिन वो सनसनी बन कर रहा।

एक अंधी दौड़ की अगुआई को बेचैन सब,
जब तलक बीनाई थी मैं आख़िरी बन कर रहा।
- संजय ग्रोवर