Surkh Gulab Si Tum

सुर्ख गुलाब सी तुम हो,
जिन्दगी के बहाव सी तुम हो,
हर कोई पढ़ने को बेकरार,
पढ़ने वाली किताब सी तुम हो।

तुम्हीं हो फगवां की सर्द हवा,
मौसम की पहली बरसात सी तुम हो,
समन्दर से भी गहरी,
आशिकों के ख्वाब सी तुम हो।

रहनुमा हो जमाने की,
जीने के अन्दाज सी तुम हो,
नजर हैं कातिलाना,
बोतलों में बन्द शराब सी तुम हो।

गुनगुनी धुप हो शीत की,
तपती घूप मैं छाँव सी तुम हो,
आरती का दीप हो,
भक्ति के आर्शीवाद सी तुम हों।

ता उम्र लिखता रहे कुमार
हर सवाल के जवाब सी तुम हो।

~राजेंद्र कुमार

Surkh Gulab Si Tum Shayari

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