Meraz Faizabadi Shayari

वो दो दिन उदास भी न रहे

अगले जन्म में मिलने की कोई आस भी न रहे,
जो सूख जाये दरिया तो फिर प्यास भी न रहे,
जो कह रहे थे कि जीना मुहाल है तुम बिन,
बिछड़ के मुझ से वो दो दिन उदास भी न रहे।

Agle Janm Mein Milne Ki Koi Aas Bhi Na Rahe,
Jo Sookh Jaaye Dariya To Phir Pyaas Bhi Na Rahe,
Jo Keh Rahe The Ki Jeena Muhaal Hai Tum Bin,
Bichhad Ke Mujh Se Wo Do Din Udaas Bhi Na Rahe.

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कुछ कच्चे मकानों वाले

आज भी गाँव में कुछ कच्चे मकानों वाले,
घर में हम-साए के फ़ाक़ा नहीं होने देते।

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बंद कर लीं आँखें

यूँ हुआ फिर बंद कर लीं
उसने आँखें एक दिन,
वो समझ लेता था
दिल का हाल चेहरा देख कर।

लश्कर नहीं देखे जाते

भीगती आँखों के मंज़र नहीं देखे जाते,
हम से अब इतने समुंदर नहीं देखे जाते।

उस से मिलना है तो फिर सादा-मिज़ाजी से मिलो,
आईने भेस बदल कर नहीं देखे जाते।

वज़'-दारी तो बुज़ुर्गों की अमानत है मगर,
अब ये बिकते हुए ज़ेवर नहीं देखे जाते।

ज़िंदा रहना है तो हालात से डरना कैसा,
जंग लाज़िम हो तो लश्कर नहीं देखे जाते।

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