Shanti Swaroop Mishra Shayari
Aakhir Saanson Ka Saath...
आखिर सांसों का साथ, कब तक रहेगा,
किसी का हाथों में हाथ, कब तक रहेगा।
बस यूं ही डूबते रहेंगे चाँद और सूरज तो,
आखिर रोशनी का साथ, कब तक रहेगा।
अगर जीना है तो चलना पड़ेगा अकेले ही,
आखिर रहबरों का साथ, कब तक रहेगा।
न करिये काम ऐसे कि डूब जाये नाम ही,
आखिर सौहरतों का साथ, कब तक रहेगा।
कभी तो ज़रूर महकेगा उल्फत का चमन,
आखिर ख़िज़ाओं का साथ, कब तक रहेगा।
तुम भी खोज लो मिश्र ख़ुशी के अल्फ़ाज़,
आखिर रोने-धोने का साथ, कब तक रहेगा।
Bekaar Apne Waqt Ko...
बेकार अपने वक़्त को, गंवाया मत करिये
हर जगह अपनी टांग, फंसाया मत करिये।
कोई भी किसी से कम नहीं है आज कल,
बेसबब किसी पे धौंस, जमाया मत करिये।
ख़ुराफ़ातों से न मिला है न मिलेगा कुछ भी,
यूं हर वक़्त टेढ़ी चाल, दिखाया मत करिये।
ये ज़िन्दगी है यारो इसे मोहब्बत से जीयो,
इसमें नफ़रतों का पानी, चढ़ाया मत करिये।
गर उलझन है अपनों से तो सुलझाइये खुद,
मगर शोर घर से बाहर, मचाया मत करिये।
अब तो न बचा है कोई भी भरोसे के लायक,
किसी को दिल की बात, बताया मत करिये।
ज़िन्दगी का मसला कोई खेल नहीं है मिश्र,
कभी बेवजह इसको, उलझाया मत करिये।
Kya Milega...
किसी के ज़ख्मों को, दुखा कर क्या मिलेगा,
किसी के सपनों को, मिटा कर क्या मिलेगा।
यारा भर चुके हो जब अँधेरे दिलों के अंदर,
तो फिर इन दीयों को, जला कर क्या मिलेगा।
खो दिया जब तुमने ईमान ही अपना दोस्त,
फिर यूं झूठी कहानी, सुना कर क्या मिलेगा।
बसा रखा है जब मैल ही मैल अपने दिल में,
तो फिर मोहब्बतों को, जता कर क्या मिलेगा।
जो खुद ही घिरे हैं अपने कुकर्मों के भंवर में,
तो भला हाथ ऐसों को, थमा कर क्या मिलेगा।
ख़ुदा तो जानता है हर किसी को अंदर तक,
तो फिर उससे भी, मुंह छुपा कर क्या मिलेगा।
यारो न कर सको किसी का भला तो अच्छा,
पर किसी को यूं बकरा, बना कर क्या मिलेगा।
छोड़ दो ये दुनिया बस यही बेहतर है मिश्र,
यूं ही अकारण दिल को, सता कर क्या मिलेगा।
Mere Khwabo Ka Bharam...
मेरे ख्वाबों का यारो, कुछ भरम तो रहने दो
लूट लो सब कुछ, ईमानो धरम तो रहने दो।
खंडहरों को देख कर न उड़ाइये मेरी खिल्ली,
मुझको मेरे वजूद का, कुछ वहम तो रहने दो।
मोहब्बत मेरी दौलत है बस इतना समझ लो,
इस मुफ़लिसी का क्या, कुछ अहम तो रहने दो।
जानें क्यों कुचलते हैं लोग किसी के जज़्बों को,
इंसानियत के नाम पर, कुछ शरम तो रहने दो।
ये वक़्त भी गुज़र जायेगा बस देखते देखते पर,
उठाने के वास्ते ये नज़र, कुछ करम तो रहने दो।
किसी की इज़्ज़त से भी इतना न खेलिए मिश्र,
अपनी तीखी जुबान को, कुछ नरम तो रहने दो।
Aisi Hai Ye Duniya...
बड़ी ख़ुदग़र्ज़, बड़ी फ़ितरती है दुनिया,
नफ़रतों के खम्बों पर टिकी है दुनिया।
किसी को ग़म नहीं धेले भर किसी का,
ये बड़ी ही बेरहम और बेरुखी है दुनिया।
अब तो जीते हैं लोग बस अपने लिए ही,
यारो औरों के लिए मर चुकी है दुनिया।
न रहे ज़िंदा अब तो बेमक़सद के रिश्ते,
अब मतलब की दोस्ती करती है दुनिया।
देते हैं जो छांव धूप में जल कर भी यारो,
फर्सा उन्हीं की जड़ पे पटकती है दुनिया।
अफसोस होता है देख कर दो रंग इसके,
कहीं हँसती तो कहीं सिसकती है दुनिया।
लोग ख़ैरियत पूछने में देखते हैं हैसियत,
कैसे पल-पल में देखो, बदलती है दुनिया।
ये कैसा उल्टा कानून है खुदा का "मिश्र"
कि जो मारते हैं उन्हीं पे मरती है दुनिया।