Na Dard Ab Koi

न आरजू है न उल्फत है न दर्द अब कोई,
तुझे मुझसे शायद अब मोहब्बत भी न कोई।

दिल का शीशा जो टूटा तो चकनाचूर हुआ,
अब दिल के टूटे आईने में तस्वीर भी ना कोई।

समंदर सा बसा है आँखों के कोर तले,
अचानक ही बरस पड़ता है छुपा हुआ सावन कोई।

दिन भी काले शामें भी तन्हा रात गहरी उदासी सी,
नहीं सजाता अब इस तन्हा दिल में महफ़िल कोई।

एक हूक एक कसक सी उठती है दिल में जैसे,
ना आएगी अब लौट के खुशी कोई।

क्यों दिल लगाया जवानी के पागलपन में,
काश लौटा दे अब मेरा वो मासूम सा बचपन कोई।

~अर्पणा

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