ये खुशी तो रही
कम से कम ये खुशी तो रही,
तू मेरे ख्वाब का हिस्सा सही,
है बस उनसे शिकायत यही,
कहनी थी जो बात नहीं कही,
गूँजती है अब भी कानों में,
बात जो तुमने कभी नहीं कही,
नाव लिए हम बैठे ही रहे,
और नदी दूर से बहती रही,
उम्र गुजरी गुनगुनाते हुए,
वो ग़ज़ल जो अधूरी रही।
- डॉ. वेद प्रकाश भारद्वाज
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