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और भी ज़ख्म हैं
दिल कहता है मोहब्बत नहीं क़यामत है ये,
फिर दिल की दीवार पर तेरा चेहरा क्यूँ है,
और भी ज़ख्म हैं तेरे ज़ख्मों के सिवा,
तेरे ही ज़ख्म का दाग इतना गहरा क्यूँ है।
Dil Kehta Hai Mohabbat Nahi Qayamat Hai Ye,
Fir Dil Ki Deewar Par Tera Chehra Kyun Hai,
Aur Bhi Zakhm Hain Tere Zakhmon Ke Siwa,
Tere Hi Zakhm Ka Daagh Itna Gehra Kyun Hai.
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