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चाहत जो बिछड़ने लगी
अब तो तबियत हमारी बिगड़ने लगी है,
कोई चाहत जो हमसे बिछड़ने लगी है,
आरज़ू जो कोई दिल में दबी रह गयी,
अब बन के धुआँ कहीं उड़ने लगी है,
हर अक्स तेरा दिल की गहराई में है,
रूह दिल के ज़ख्मों से डरने लगी है।
~बलराम सिंह
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