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Mit Gayi Duniya Humari

मिट गई दुनिया हमारी आसरा कोई नहीं,
बाँट ली खुशियॉ सभी ने ग़म बाँटता कोई नहीं।

बीच अपनों के भी रहकर लग रहा है ये मुझे,
अजनबी हूँ इस शहर में जानता कोई नहीं।

कैसे रिश्तेदार हैं ये कैसी है ये दोस्ती,
दौरे मुश्किल में हमारे काम आता कोई नहीं।

चैन दिन को है न रातों को सुकूं पाते हैं हम,
दर्द से फिर भी हमारे आशना कोई नहीं।

यूं तो सब हमदर्द हैं और हमनवा भी हैं मगर,
साथ गुरबत में जो दे दे ऐसा मेरा कोई नहीं।

मंजिले-राहत प पहुंचू किस तरह तू ही बता,
रहगुज़र है और मैं हूँ कारवॉ कोई नहीं।

जा के किसको हम सुनाए हाले-दिल तू ही बता,
सुनने वाला ग़म की मेरे दास्तॉ कोई नहीं।

ग़म के साये में है गुज़री उम्र भर ये ज़िंदगी,
दर्द की मेरे खुदाया क्या दवा कोई नहीं।

खा रहा है ठोकरे जाफर तन्हा परदेस में,
रहबरी करने को मेरी राहनुमा कोई नहीं।

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