सवाल बहुत थे

सवाल बहुत थे
जवाब कुछ भी नहीं था,
सफर पुराना था मगर
अंजाम कुछ भी नहीं था,

कदम बेतरतीब चले जा रहे थे
हिसाब कुछ भी नहीं था,
पिघल रहे थे हौसले मेरे बर्फ की मानिंद
बेहिसाब कुछ भी नहीं था,

वो मिले राह में चलते-चलते
तब थकान कुछ भी नहीं थी,
ठहरकर मुझे इश्क़ की गली में
पर मकाम कुछ भी नहीं था,

पल-ए-सुकून मिला ज़रूर
जवाब कुछ भी नहीं था,
लाजवाब था उनका मिलना
पर उनकी नज़रो में
मेरा प्यार कुछ भी नहीं था।

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