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- Tareef Shayari
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फूल जैसे एक बदन को
क्यों न अपनी ख़ूबी-ए-क़िस्मत पे
इतराती हवा,
फूल जैसे एक बदन को
छू कर आई थी हवा।
Kyon Na Apni Khoobi-e-Kismat Pe
Itraati Hawa,
Phool Jaise Ek Badan Ko
Chhoo Kar Aayi Thi Hawa.
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