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वो लम्हे जहर से
मैं घर का रास्ता भूला, जो निकला आपके शहर से,
इमारत दिल की ढह गई, आपके हुस्न के कहर से,
खुदा माना, आप न माने, वो लम्हे गए यूँ ठहर से,
वो लम्हे याद करता हूँ तो लगते हैं अब जहर से।
~ किशन कुमार झा
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