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ग़म शायरी
Aisa Gam De Gaya
हर शरारत को जिसकी था माना मोहब्बत,
कोई बनाके यूँ अपना ज़हर दे गया,
सितम ऐसा जमाने में कोई और नहीं,
वो होकर जुदा ऐसा ग़म दे गया।
बहारों से लड़ा था मैं जिसके लिए,
वो उजड़ा सा मुझको चमन दे गया,
मुझे रहना नहीं अब एक पल भी यहाँ,
वो ज़ख्मों से भरा एक शहर दे गया।
~बलराम सिंह
Gam Chhupa Ke Hansne Wale
Jinki Aankhein Aansuon Se Nam Nahin,
Kya Samajhte Ho Use Koyi Gam Nahin?
Tum Tadap Kar Ro Diye To Kya Hua,
Gam Chhupa Ke Hansne Wale Bhi Kam Nahin.
जिनकी आँखें आँसू से नम नहीं,
क्या समझते हो उसे कोई गम नहीं?
तुम तड़प कर रो दिये तो क्या हुआ,
ग़म छुपा के हँसने वाले भी कम नहीं।
Gam Ka Samndar
हुस्न खो जायेगा प्यार मिट जायेगा,
वक़्त के हाथ सबकुछ लुट जायेगा,
हाँ रहेगी मगर याद मेरे दिल में तेरी,
ग़म का समंदर तो सिमट जायेगा।
मैं भला क्यूँ अब उसकी तमन्ना करूँ,
मेरा हो के भी जब वो मेरा न हुआ,
है यकीन आएगा एक दिन ऐसा भी,
मेरे मरने पे मुझसे वो लिपट जायेगा।
तेरे संग की थी जो बहारों की बातें,
याद हैं मुझको वो चाँद तारों की बातें,
रह गए अब तो तनहा, बेबस, अकेले,
ज़िन्दगी का सफ़र यूं ही कट जायेगा।
Najar Utha Kar Tadap Uthe
Muddat Se Jin Ki Aas Thi
Wo Mile Bhi To Kuchh Yoon Mile,
Hum Najar Utha Kar Tadap Uthe
Wo Najar Jhuka Kar Gujar Gaye.
मुद्दत से जिन की आस थी
वो मिले भी तो कुछ यूँ मिले,
हम नजर उठा कर तड़प उठे
वो नजर झुका कर गुजर गए।
Gam-e-Yaar Bhi Shamil Kar Lo
Gam-e-Duniya Mein Gam-e-Yaar Bhi Shamil Kar Lo,
Nasha Barhta Hai Sharabein Jo Sharabon Mein Milein,
Ab Na Wo Main Hoon, Na Tu Hai, Na Wo Mazi Hai Faraz,
Jaise Do Saaye Tamanna Ke Saraabon Mein Milein.
अहमद फ़राज़ग़म-ए-दुनिया में ग़म-ए-यार भी शामिल कर लो,
नशा बढ़ता है शराबें जो शराबों में मिलें,
अब न वो मैं हूँ, न तू है, न वो माज़ी है फ़राज़,
जैसे दो साए तमन्ना के सराबों में मिलें।
Gam Ne Ubarne Na Diya
एक वो हैं कि जिन्हें उनकी ख़ुशी ले डूबी,
एक हम हैं कि जिन्हें ग़म ने उबरने न दिया।
Ek Wo Hain Ke Jinhein Unki Khushi Le Doobi,
Ek Hum Hain Ke Jinhein Gam Ne Ubarne Na Diya.
Zindagi Mein Itne Gam The
अर्श सहबाईकौन सा वो ज़ख्मे-दिल था जो तर-ओ-ताज़ा न था,
ज़िन्दगी में इतने ग़म थे जिनका अंदाज़ा न था,
'अर्श' उनकी झील सी आँखों का उसमें क्या क़ुसूर,
डूबने वालों को ही गहराई का अंदाज़ा न था।
Kaun Sa Wo Zakhm-e-Dil Tha Jo Tar-o-Taaza Na Tha,
Zindagi Mein Itne Gam The Jinka Andaaza Na Tha,
Arsh Unki Jheel Si Aankhon Ka Usmein Kya Kasoor,
Doobane Walon Ko Hi Gehrayi Ka Andaaza Na Tha.
Ek Gam Se Bhi
ग़ुलाम हुसैन साजिदढूंढ़ लाया हूँ खुशी की छाँव जिसके वास्ते,
एक गम से भी उसे दो-चार करना है मुझे।
Dhoodh Laaya Hoon Khushi Ki Chhanv Jiske Vaaste,
Ek Gam Se Bhi Do-Char Karna Hai Mujhe.