हिंदी शायरी

चाहत की इंतिहा

दिल की धड़कन और मेरी सदा है वो,
मेरी पहली और आखिरी वफ़ा है वो,
चाहा है उसे मैंने चाहत से बढ़ कर,
मेरी चाहत और चाहत की इंतिहा है वो।

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महबूब लौटा नहीं करते

शेर-ओ-शायरी तो दिल बहलाने का ज़रिया है जनाब,
लफ़्ज़ काग़ज़ पर उतारने से महबूब लौटा नहीं करते।

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बेवफाई मार गयी

कभी ग़म तो कभी तन्हाई मार गयी,
कभी याद आ कर उनकी जुदाई मार गयी,
बहुत टूट कर चाहा जिसको हमने,
आखिर में उनकी ही बेवफाई मार गयी।

सच्ची है मेरी दोस्ती

सच्ची है मेरी दोस्ती आजमा के देखलो,
करके यकीं मुझ पे मेरे पास आके देखलो,
बदलता नहीं कभी सोना अपना रंग,
जितनी बार दिल करे आग लगा कर देखलो।

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Padi Jarurat Humsafar Ki

Zindagi Dene Wale Yun Marta Chhod Gaye,
ApanaPan Jatane Wale You Tanha Chhod Gaye,
Jab Padi Jarurat Humein Apne Humsafar Ki,
To Sath Chalne Wale Apna Rasta Mod Gaye.

ज़िन्दगी देने वाले यूँ मरता छोड़ गए,
अपनापन जताने वाले यूँ तनहा छोड़ गए,
जब पड़ी जरुरत हमें अपने हमसफ़र की,
तो साथ चलने वाले अपना रास्ता मोड़ गए.

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तेरी चाहत में अक्सर

तुम्हे जो याद करता हुँ, मै दुनिया भूल जाता हूँ ।
तेरी चाहत में अक्सर, सभँलना भूल जाता हूँ ।।

तुम्ही से प्यार करता हूँ, तुम्ही पे जान देता हूँ ।
फिर भी न जाने क्युँ मैं, ये कहना भूल जाता हूँ ।।

तेरे स्पर्श से ही रिचाये अवतरित होती ।
परन्तु मैं उन्हे वेदो में, गढ़ना भूल जाता हूँ ।।

मुझे बस याद रहते हैं, तेरे वो प्रेम के चुम्बन ।
मगर मैं फिर उन्हे, होठो पे लाना भूल जाता हूँ ।।

याद हैं तेरा शहर, वो मदमस्त अल्लड़ चाल भी ।
न जाने क्यों तेरा, हंस कर पलटना भूल जाता हूँ ।।

मेरी स्मृति में छपी हो तुम, तरंगे वायु की बन के ।
तेरी मोहिनी पे मैं, तुझे भी भूल जाता हूँ ।।

साकी तेरा दीदार

होने को आई शाम, इन गहराए बादलो में,
तन को लगी शीतल बहार, तलब हुई मयखानों की।

सोचा मंगा लूँ मदिरा, करूँ यहीं बैठकर पान,
फिर सोचा चलूँ मयखाने, करने साकी तेरा दीदार।

किया साकी दीदार तेरा, चढ़ गई मुझको हाला,
चढ़ी हाला मुझको ऐसी, नही जग ने सम्भाला।

हुई भोर चढ़ा सूरज, दिन कब ढल गया,
फिर हुआ वही साकी, जो पिछली शाम हुआ।

चला मै उसी राह, जिस राह पर मयखाना था,
पर आज तू नहीं, यहाँ तो मद्द का प्याला था।

हो आई तलब आज फिर से साकी तेरी,
इस जग से रुसवा हो जाऊँ, या फिर तु हो जा मेरी।

आज फिर तुमने मुझे बताया कि मै कौन हूँ,
वरना मै तो केवल तुम्हारे भीतर ही समाया था।

हम वो नही साकी, जो बेकद्र-ऐ-मोहब्बत हो,
हम वो है साकी, जो शजर-ऐ-मोहब्बत हो।

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इश्क़ की आग मेरे दिल

उस इश्क़ की आग मेरे दिल को आज भी जलाया करती है,
जुदा हुए तो क्या हुआ ये आँख आज भी उनका इंतज़ार करती है।