लश्कर नहीं देखे जाते

भीगती आँखों के मंज़र नहीं देखे जाते,
हम से अब इतने समुंदर नहीं देखे जाते।

उस से मिलना है तो फिर सादा-मिज़ाजी से मिलो,
आईने भेस बदल कर नहीं देखे जाते।

वज़'-दारी तो बुज़ुर्गों की अमानत है मगर,
अब ये बिकते हुए ज़ेवर नहीं देखे जाते।

ज़िंदा रहना है तो हालात से डरना कैसा,
जंग लाज़िम हो तो लश्कर नहीं देखे जाते।

-Advertisement-
-Advertisement-