- Home
- Hindi Urdu Ghazal
- Shahar Mein Bacha Hi Kya Hai
Shahar Mein Bacha Hi Kya Hai
अब तेरे शहर में रहने को बचा ही क्या है,
जुदाई सह ली तो सहने को बचा ही क्या है।
सब अजनबी हैं, तेरे नाम से जाने मुझको,
पढ़ने वाला नहीं, लिखने को बचा ही क्या है।
ये भी सच है कि मेरा नाम आशिकों में नहीं,
बनके दीवाना तेरा, उछलने में रखा ही क्या है।
तू ही तू था कभी, अब मैं भी ना रहा,
वो जलवा भी नहीं मिटने को बचा ही क्या है।
मरना बाकी है तो, मर भी जायेंगे एक दिन,
सुनने बाला नहीं, कहने को बचा ही क्या है।
~राजेंद्र कुमार
-Advertisement-
-Advertisement-