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रात भर तन्हा
जमाना सो गया और मैं जगा रातभर तन्हा
तुम्हारे गम से दिल रोता रहा रातभर तन्हा ।
मेरे हमदम तेरे आने की आहट अब नहीं मिलती
मगर नस-नस में तू गूंजती रही रातभर तन्हा ।
नहीं आया था कयामत का पहर फिर ये हुआ
इंतजारों में ही मैं मरता रहा रातभर तन्हा ।
अपनी सूरत पे लगाता रहा मैं इश्तहारे-जख्म
जिसको पढ़के चांद जलता रहा रातभर तन्हा ।
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