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Log Samajh Lete Hain
अंधेरों को भी लोग, उजाला समझ लेते हैं,
शातिरों को वो, अपना सहारा समझ लेते हैं।
मैं आज तक न समझ पाया खुद को यारो,
लोग हैं कि खुद को, क्या क्या समझ लेते हैं।
क़त्ल करते हैं बड़ी ही मासूमियत से वो,
पर लोग हैं कि उनको बेचारा समझ लेते हैं।
थमा रखी है पतवार फरेबियों के हाथों में,
लोग हैं कि भंवर को, किनारा समझ लेते हैं।
शांती स्वरूप मिश्रकपट की चाल ही तोड़ती है रिश्तों को "मिश्र",
लोग तो इसको ही, अपनी अदा समझ लेते हैं।
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