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Chupchap Dasaa Karte Hain
लोगों के दिल कहाँ, अब तो होंठ हँसा करते हैं,
खुशियों की जगह अब, कोहराम बसा करते हैं!
भला वो बात अब कहाँ जो कभी पहले थी यारो,
लोग उल्फ़त नहीं अब, नफ़रत का नशा करते हैं!
जिधर नज़र जाती है दिखती हैं मक्कारियां उधर,
यहाँ दाग़ियों के बदले अब, बेदाग़ फंसा करते हैं!
न होइए खुश इतना पाकर हमदर्दियां किसी की,
यही वो मेहरवां हैं जो, कहीं भी तंज कसा करते हैं!
शांती स्वरूप मिश्रन पिलाओ दूध उनको कभी अपने न होंगे "मिश्र",
यही तो ताक कर अवसर, चुपचाप डसा करते हैं!
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