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Manzilon Ki Aarzoo
मंज़िलों तक मंज़िलों की आरज़ू रह जाएगी,
कारवाँ थक जाएँ फिर भी जुस्तुजू रह जाएगी।
ऐ दिल-ए-नादाँ तुझे भी चाहिए पास-ए-अदब,
वो जो रूठे तो अधूरी गुफ़्तुगू रह जाएगी।
ग़ैर के आने न आने से भला क्या फ़ाएदा,
तुम जो आ जाओ तो मेरी आबरू रह जाएगी।
इस भरी महफ़िल में तेरी एक मैं ही तिश्ना-लब,
साक़िया क्या ख़्वाहिश-ए-जाम-ओ-सुबू रह जाएगी।
ज़मील मुरस्सापुरीहम अगर महरूम होंगे अहल-ए-फ़न की दाद से,
शेर कहने की किसे फिर आरज़ू रह जाएगी।
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