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Kya Milega
किसी के ज़ख्मों को, दुखा कर क्या मिलेगा,
किसी के सपनों को, मिटा कर क्या मिलेगा।
यारा भर चुके हो जब अँधेरे दिलों के अंदर,
तो फिर इन दीयों को, जला कर क्या मिलेगा।
खो दिया जब तुमने ईमान ही अपना दोस्त,
फिर यूं झूठी कहानी, सुना कर क्या मिलेगा।
बसा रखा है जब मैल ही मैल अपने दिल में,
तो फिर मोहब्बतों को, जता कर क्या मिलेगा।
जो खुद ही घिरे हैं अपने कुकर्मों के भंवर में,
तो भला हाथ ऐसों को, थमा कर क्या मिलेगा।
ख़ुदा तो जानता है हर किसी को अंदर तक,
तो फिर उससे भी, मुंह छुपा कर क्या मिलेगा।
यारो न कर सको किसी का भला तो अच्छा,
पर किसी को यूं बकरा, बना कर क्या मिलेगा।
शांती स्वरूप मिश्रछोड़ दो ये दुनिया बस यही बेहतर है मिश्र,
यूं ही अकारण दिल को, सता कर क्या मिलेगा।
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