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Laaun Kahan Se
महकता वो चमन लाऊँ कहाँ से,
जुदा जिसका तसव्वुर हो ख़िज़ाँ से।
कभी पूछा है तुमने कहकशाँ से,
हुए गुम क्यों सितारे आसमाँ से।
न जाने क्या मिलाया था नज़र में,
क़दम हिल भी नहीं पाए वहाँ से।
सँभलने के लिए कुछ वक़्त तो दो,
अभी उतरा ही है वो आसमाँ से।
किसी सूरत बहार आए गुलों पर,
उड़ी है इनकी रंगत ही ख़िज़ाँ से।
हटा दे तीरगी जो मेरे दिल की,
मैं ऐसी रोशनी लाऊँ कहाँ से।
अज़ाब-ए-जीस्त रुसवाई ख़मोशी,
मिले 'निर्मल' को तुहफ़े महरबां से।
~रचना निर्मल
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