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हिंदी शायरी
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दर्द कैसा भी उठे
अहमद फ़राज़ज़िक्र उस का ही सही बज़्म में बैठे हो फ़राज़,
दर्द कैसा भी उठे हाथ न दिल पर रखना।
मेरा भूलने वाला
मेरे क़ाबू में न पहरों दिले-नाशाद आया,
वो मेरा भूलने वाला जो मुझे याद आया।
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हम पर जो गुजरी
मोहब्बत खूबसूरत होगी किसी और दुनियाँ में,
इधर तो हम पर जो गुजरी है हम ही जानते हैं।
बेवफाई उसकी दिल से

बेवफाई उसकी दिल से मिटा के आया हूँ,
ख़त भी उसके पानी में बहा के आया हूँ,
कोई पढ़ न ले उस बेवफा की यादों को,
इसलिए पानी में भी आग लगा कर आया हूँ।
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गुजर गयी जिंदगी
अजीब तरह से गुजर गयी मेरी जिंदगी,
सोचा कुछ, किया कुछ, हुआ कुछ, मिला कुछ।