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हिंदी शायरी
न हाथ थाम सके
न हाथ थाम सके और न पकड़ सके दामन,
बहुत ही क़रीब से गुज़र कर बिछड़ गया कोई।
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सितम को करम समझे
शेख़ इब्राहिम जौकसितम को हम करम समझे,
जफा को हम वफा समझे,
जो इस पर भी न समझे वह
तो उस बुत को खुदा समझे।
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मेरे बर्दाश्त करने का
मेरे बर्दाश्त करने का अंदाजा
तू क्या लगायेगी पगली,
तेरी उम्र से ज्यादा मेरे जिस्म पर
ज़ख्मो के निशाँ हैं।
खुशियाँ बटोरते बटोरते उम्र
खुशियाँ बटोरते बटोरते उम्र गुजर गई
लेकिन खुश न हो सके...
एक दिन अहसास हुआ कि
खुश तो वे लोग हैं जो खुशियाँ बाँट रहे हैं।
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हाथ नहीं थामा
बस एक मेरा ही हाथ नहीं थामा उस ने,
वरना गिरते हुए कितने ही संभाले उसने।
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ज़िस्म से मेरे तड़पता
ज़िस्म से मेरे तड़पता दिल कोई तो खींच लो,
मैं बगैर इसके भी जी लूँगा मुझे अब ये यकीन है।
फिर ना आ सकोगे
तुम फिर ना आ सकोगे,
बताना तो था ना मुझे,
तुम दूर जा कर बस गए,
और मैं ढूंढ़ता ही रह गया।
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बताओ है कि नहीं
बताओ है कि नहीं मेरे ख्वाब झूठे,
कि जब भी देखा तुझे अपने साथ देखा।