Abdul Hameed Adam Shayari

शराब की तोहमत

शराब की तोहमत Shayari

साक़ी मुझे शराब की तोहमत नहीं पसंद,
मुझ को तेरी निगाह का इल्जाम चाहिए।

Saaki Mujhe Sharaab Ki Tohmat Nahi Pasand,
Mujh Ko Teri Nigaah Ka ilzaam Chahiye.

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Wo Aankhein Kitni Qaatil Hain

हम उससे थोड़ी दूरी पर हमेशा रुक से जाते हैं,
न जाने उससे मिलने का इरादा कैसा लगता है,
मैं धीरे-धीरे उनका दुश्मन-ए-जाँ बनता जाता हूँ,
वो आँखें कितनी क़ातिल हैं वो चेहरा कैसा लगता है।

Hum Uss Se Thodi Doori Par Hamesha Ruk Se Jaate Hain,
Na Jaane Uss Se Milne Ka Iraada Kaisa Lagta Hai,
Main Dheere-Dheere Unka Dushman-e-Jaan Banta Jaata Hoon,
Wo Aankhein Kitni Qaatil Hain Wo Chehra Kaisa Lagta Hai.

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कट गई हयात

उसके बगैर भी तो अदम कट गई हयात,
उसका खयाल उससे जियादा जमील था।

साकी नजर मिला के पिला

शिकन न डाल जबीं पर शराब देते हुए,
यह मुस्कराती हुई चीज मुस्करा के पिला,
सरूर चीज के मिकदार में नहीं मौकूफ,
शराब कम है साकी तो नजर मिला के पिला।

Shikan Na Daal Zabin Par Sharab Dete Huye,
Ye Muskurati Hui Cheej Muskura Ke Pila,
Saroor Cheej Ke Mikdaar Mein Nahi Maukoof,
Sharaab Kam Hai Saqi Toh Najar Mila Ke Pila.

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