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Parveen Shakir Shayari
हाथ मेरे भूल बैठे
परवीन शाकिरहाथ मेरे भूल बैठे दस्तकें देने का फ़न,
बंद मुझ पर जब से उस के घर का दरवाज़ा हुआ।
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Doobi Hain Meri Ungliya
Doobi Hain Meri Ungliya Khud Apne Lahu Me,
Ye Kaanch Ke Tukdon Ko Uthane Ki Saza Hai !
परवीन शाकिरडूबी हैं मेरी उँगलियाँ खुद अपने लहू में,
ये काँच के टुकड़ों को उठाने के सज़ा है...!
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