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वो लम्हे जहर से...
मैं घर का रास्ता भूला, जो निकला आपके शहर से,
इमारत दिल की ढह गई, आपके हुस्न के कहर से,
खुदा माना, आप न माने, वो लम्हे गए यूँ ठहर से,
वो लम्हे याद करता हूँ तो लगते हैं अब जहर से।
~ किशन कुमार झा
गहरे राज़ मेरे...
दुनिया को लगते हैं बुरे अंदाज मेरे,
लोग कहाँ जानते हैं गहरे राज़ मेरे।
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सब जानते हुए भी, क्या कमाल पूछते हो,
मुझे क़त्ल करके मेरा हाल पूछते हो।
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कि पता पूछ रहा हूँ मेरे सपने कहाँ मिलेंगे?
जो कल तक साथ थे मेरे अपने कहाँ मिलेंगे?
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ये जो हर शायर का हाल है,
मोहब्बत की ही तो मिसाल है।
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कुछ बदल जाते हैं, कुछ मजबूर हो जाते हैं,
बस यूं लोग एक-दूसरे से दूर हो जाते हैं।
~ किशन कुमार झा