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दो लाइन शायरी
दो लाइन शायरी कमाल का जिगर
कमाल का जिगर रखते है कुछ लोग,
दर्द पढ़ते है और आह तक नहीं करते।
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ना मैं शायर हूँ ना मेरा शायरी से कोई वास्ता,
बस शौक बन गया है, तेरे जलवों को बयान करना।
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मुस्कुरा देता हूँ अक्सर देखकर पुराने खत तेरे,
तू झूठ भी कितनी ईमानदारी से लिखती थी।
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एक उमर बीत चली है तुझे चाहते हुए,
तू आज भी बेखबर है कल की तरह।
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तेरी गली में आकर के खो गये हैं दोंनो,
मैं दिल को ढ़ूँढ़ता हुँ दिल तुमको ढ़ूँढ़ता है।
ग़ालिब की हिंदी उर्दू शायरी
मिर्ज़ा ग़ालिबइशरत-ए-क़तरा है दरिया में फ़ना हो जाना,
दर्द का हद से गुज़रना है दवा हो जाना।
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उग रहा है दर-ओ-दीवार से सबज़ा ग़ालिब,
हम बयाबां में हैं और घर में बहार आई है।
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घर में था क्या कि तेरा ग़म उसे ग़ारत करता,
वो जो रखते थे हम इक हसरत-ए-तामीर सो है।
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ज़िंदगी अपनी जब इस शक्ल से गुज़री,
हम भी क्या याद करेंगे कि ख़ुदा रखते थे।
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ता हम को शिकायत की भी बाक़ी न रहे जा,
सुन लेते हैं गो ज़िक्र हमारा नहीं करते।
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ग़ालिब तिरा अहवाल सुना देंगे हम उन को,
वो सुन के बुला लें ये इजारा नहीं करते।
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मुँद गईं खोलते ही खोलते आँखें ग़ालिब,
यार लाए मेरी बालीं पे उसे पर किस वक़्त।
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लो हम मरीज़-ए-इश्क़ के बीमार-दार हैं,
अच्छा अगर न हो तो मसीहा का क्या इलाज।
गालिब की शायरी सिसकियाँ लेता है वजूद
मिर्ज़ा ग़ालिबसिसकियाँ लेता है वजूद मेरा गालिब,
नोंच नोंच कर खा गई तेरी याद मुझे।
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इश्क़ पर ज़ोर नहीं है ये वो आतिश ग़ालिब,
कि लगाए न लगे और बुझाए न बने।
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बोसा देते नहीं और दिल पे है हर लहज़ा निगाह,
जी में कहते हैं कि मुफ़्त आए तो माल अच्छा है।
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ज़िक्र उस परी-वश का और फिर बयाँ अपना;
बन गया रक़ीब आख़िर था जो राज़-दाँ अपना।
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कोई मेरे दिल से पूछे तेरे तीर-ए-नीम-कश को,
ये ख़लिश कहाँ से होती जो जिगर के पार होता।
KhudGarz Ban Gaye
Marzi Se Jeen Ki Bas Khwahish Ki Thi Maine,
Aur Wo Kehte Hain Ke KhudGarz Ban Gaye Ho Tum.
मर्जी से जीने की बस ख्वाहिश की थी मैंने,
और वो कहते हैं कि खुदगर्ज बन गये हो तुम।
Rawaiye Ajnabi Hokar
Chehre Ajnabi Ho Jaye Toh Koi Baat Nahi,
Rawaiye Ajnabi Hokar Badi Takleef Dete Hain.
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Likhna Toh Ye Tha Ke Khush Hoon Tere Bagair,
Par Kalam Se Pahle Aansoo Kagaz Pe Gir Gaya.
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Na Jaane Waqt Khafa Hai Ya Khuda Naraaj Hai,
Dam Tod Deti Hai Har Khushi Mere Ghar Aate-Aate.
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Patthar Bhi Toh Ab Mujhse Kinara Karne Lage,
Ke Tum Na Sudhroge Meri Thhokrein Khakar.
लिखना तो ये था कि खुश हूँ तेरे बगैर भी,
पर कलम से पहले आँसू कागज़ पर गिर गया।
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चेहरे अजनबी हो जाये तो कोई बात नहीं,
रवैये अजनबी हो कर बड़ी तकलीफ देते हैं।
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ना जाने वक्त खफा है या खुदा नाराज है हमसे,
दम तोड़ देती है हर खुशी मेरे घर तक आते आते।
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पत्थर भी तो अब मुझसे किनारा करने लगे,
कि तुम ना सुधरोगे मेरी ठोकरें खा कर।
Two Line Faiz Shayari in Hindi
दिल में अब यूँ तेरे भूले हुये ग़म आते हैं,
जैसे बिछड़े हुये काबे में सनम आते हैं।
Dil Mein Ab Yoon Tere Bhoole Huye Gham Aate Hain,
Jaise Bichhade Huye Kaabe Mein Sanam Aate Hain.
तुम्हारी याद के जब ज़ख़्म भरने लगते हैं,
किसी बहाने तुम्हें याद करने लगते हैं।
Tumhari Yaad Ke Jab Zakhm Bharne Lagte Hain,
Kisi Bahaane Phir Tumhein Yaad Karne Lagte Hain.
ये आरज़ू भी बड़ी चीज़ है मगर हमदम,
विसाल-ए-यार फ़क़त आरज़ू की बात नहीं।
Ye Aarzoo Bhi Badi Cheej Hai Magar HumDum,
Visaal-e-Yaar Faqat Aarzoo Ki Baat Nahi.
दिल से हर मामला कर के चले थे साफ़ हम,
कहने में उनके सामने बात बदल गयी।
Dil Se Har Muaamla Kar Ke Chale The Saaf Hum,
Kahne Mein Unke Saamne Baat Badal Gayi.
दिल ना-उमीद तो नहीं नाकाम ही तो है;
लम्बी है ग़म की शाम मगर शाम ही तो है।
Dil Na-Umeed Toh Nahi Nakaam Hi Toh Hai,
Lambi Hai Gham Ki Shaam Magar Shaam Hi Toh Hai.
आए तो यूँ कि जैसे हमेशा थे मेहरबान,
भूले तो यूँ कि गोया कभी आश्ना न थे।
फैज़ अहमद फैज़Aaye Toh Yoon Ke Jaise Hamesha The Meharbaan,
Bhoole Toh Yoon Ke Goya Kabhi Aashna Na The.
Jisne Bhi Sikhaya
Daad Dete Hain Tumhare Najar-Andaaz Karne Ke Hunar Ko,
Jisne Bhi Sikhaya Hai Woh Ustaad Kamaal Ka Hoga.
दाद देते हैं तुम्हारे नजर-अंदाज करने के हुनर को
जिसने भी सिखाया वो उस्ताद कमाल का होगा।
Log Khafa Hain
Daudti Bhagti Duniya Ka Bas Yahi Ek Tohfa Hai...
Khoob Lutate Rahe Apnapan Phir Bhi Log Khafa Hain.
दौड़ती भागती दुनिया का यही तोहफा है,
खूब लुटाते रहे अपनापन फिर भी लोग खफ़ा हैं।