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दो लाइन शायरी
Sher-o-Sukhan Kya Koi
शेर-ओ-सुखन क्या कोई बच्चों का खेल है?
जल जातीं हैं जवानियाँ लफ़्ज़ों की आग में।
Sher-o-Sukhan Kya Koi Bachchon Ka Khel Hai?
Jal Jaatin Hain Jawaaniyaan Lafzon Ki Aag Mein.
शब्दों से खेलती हूँ
मैं शब्दों से खेलती हूँ हैरान होते हैं लोग,
करती हूँ हाले दिल बयान तो परेशान होते हैं लोग।
Khwaab Ki Gehrayi
Lagta Hai Itna Waqt Mujhe Doobne Mein Kyun,
Andaza Mujh Ko Khwaab Ki Gehraai Se Hua.
लगता है इतना वक़्त मेरे डूबने में क्यूँ...?
अंदाज़ा मुझ को ख़्वाब की गहराई से हुआ।
हम कितने दिन जिए
हम कितने दिन जिए ये जरुरी नहीं,
हम उन दिनों में कितना जिए ये जरुरी है।
बेरुख़ी का मुकम्मल असर
ख़ात्मा-ए-मोहब्बत मुमकिन नही है पाक मोहब्बत मे ज़नाब,
ये तो बस कुछ वक़्त की बेरुख़ी का मुकम्मल असर होती है।
करीब से देखने पर भी ज़िन्दगी का मतलब समझ नही आया हमें,
मालूम होता है अपने ही शहर में भूला हुआ मुसाफ़िर हूँ।
मत पूछो उनसे यादों की कीमत जो खुद ही यादों को मिटा दिया करते हैं,
यादों की कीमत तो वो जानते हैं जो सिर्फ यादों के सहारे जिया करते हैं।
अंदाज़ा नही था संगदिल शख़्स से मोहब्बत अदा फ़रमा रहें हैं,
ग़र मालूम होता तो कभी रुख़्सत भी ना होते शहर-ए-मोहब्बत से।
अब छोड़ दी है उसकी आरज़ू हमेशा के लिए सागर,
जिसे मोहब्बत की क़दर ना हो उसे दुआओं में क्या माँगना।
अज़ीब सी कश्मकश मे उलझ कर रह गयी है आजकल ज़िन्दगी हमारी,
उन्हें याद करना नही चाहते और भूलना तो जैसे नामुमकिन सा है।
एक तरफ़ दामन-ए-मोहब्बत और दूसरी तरफ़ है फ़र्ज़ हमारा,
अब तू ही बता ऐ ज़िन्दगानी ! तेरा क़र्ज़ किस तरह अदा किया जाये।
किस किस से लड़े
देखा है आज मुझे भी गुस्से की नज़र से,
मालूम नहीं आज वो किस-किस से लड़े है।
Sukoon Milta Hai
Sukoon Milta Hai Lafzon Ko Kagaz Par Utaar Ke,
Keh Bhi Deta Hoon Aur Aawaz Bhi Nahi Hoti.
सुकून मिलता है दो लफ्ज़ कागज पे उतार कर,
कह भी देता हूँ और आवाज भी नहीं होती।
इक़रार का डर
डरता हूँ इक़रार से कहीं वो इनकार न कर दे,
यूँ ही तबाह अपनी जिंदगी हम यार न कर दे.