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Jamill Murassapuri Shayari
Duaa Salaam Na Ho
अगर ये ज़िद है कि मुझसे दुआ सलाम न हो,
तो ऐसी राह से गुज़रो जो राह-ए-आम न हो।
सुना तो है कि मोहब्बत पे लोग मरते हैं,
ख़ुदा करे कि मोहब्बत तुम्हारा नाम न हो।
बहार-ए-आरिज़-ए-गुल्गूँ तुझे ख़ुदा की क़सम,
वो सुबह मेरे लिए भी कि जिसकी शाम न हो।
मेरे सुकूत को नफ़रत से देखने वाले,
यही सुकूत कहीं बाइस-ए-कलाम न हो।
इलाही ख़ैर कि उन का सलाम आया है,
यही सलाम कहीं आख़िरी सलाम न हो।
ज़मील मुरस्सापुरीजमील उन से तआरूफ़ तो हो गया लेकिन,
अब उनके बाद किसी से दुआ सलाम न हो।
Manzilon Ki Aarzoo
मंज़िलों तक मंज़िलों की आरज़ू रह जाएगी,
कारवाँ थक जाएँ फिर भी जुस्तुजू रह जाएगी।
ऐ दिल-ए-नादाँ तुझे भी चाहिए पास-ए-अदब,
वो जो रूठे तो अधूरी गुफ़्तुगू रह जाएगी।
ग़ैर के आने न आने से भला क्या फ़ाएदा,
तुम जो आ जाओ तो मेरी आबरू रह जाएगी।
इस भरी महफ़िल में तेरी एक मैं ही तिश्ना-लब,
साक़िया क्या ख़्वाहिश-ए-जाम-ओ-सुबू रह जाएगी।
ज़मील मुरस्सापुरीहम अगर महरूम होंगे अहल-ए-फ़न की दाद से,
शेर कहने की किसे फिर आरज़ू रह जाएगी।