Ahmad Faraz Shayari

Gam-e-Yaar Bhi Shamil Kar Lo

Gam-e-Duniya Mein Gam-e-Yaar Bhi Shamil Kar Lo,
Nasha Barhta Hai Sharabein Jo Sharabon Mein Milein,
Ab Na Wo Main Hoon, Na Tu Hai, Na Wo Mazi Hai Faraz,
Jaise Do Saaye Tamanna Ke Saraabon Mein Milein.

ग़म-ए-दुनिया में ग़म-ए-यार भी शामिल कर लो,
नशा बढ़ता है शराबें जो शराबों में मिलें,
अब न वो मैं हूँ, न तू है, न वो माज़ी है फ़राज़,
जैसे दो साए तमन्ना के सराबों में मिलें।

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Sheeshon Toota Na Karein

लोग तो मजबूर हैं मरेंगे पत्थर,
क्यूँ न हम शीशों से कह दें टूटा न करें।

Log To Majboor Hain Marenge Patthar,
Kyoon Na Hum Sheeshon Se Keh Dein Toota Na Karein.

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Ye Aalam Shauq Ka

Ye Aalam Shauq Ka Shayari

ये आलम शौक़ का देखा न जाये,
वो बुत है या ख़ुदा देखा न जाये,
ये किन नज़रों से तुम ने आज देखा,
कि तेरा देखना ​देखा ​ना जाये।

Ye Aalam Shauq Ka Dekha Na Jaaye,
Wo But Hai Ya Khuda Dekha Na Jaaye,
Ye Kin Nazaron Se Tum Ne Aaj Dekha,
Ki Tera Dekhna ​Dekha ​Na Jaaye.

दर्द कैसा भी उठे

ज़िक्र उस का ही सही बज़्म में बैठे हो फ़राज़,
दर्द कैसा भी उठे हाथ न दिल पर रखना।

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बदन में आग सी

बदन में आग सी है चेहरा गुलाब जैसा है,
कि ज़हर-ए-ग़म का नशा भी शराब जैसा है,
इसे कभी कोई देखे कोई पढ़े तो सही,
दिल आइना है तो चेहरा किताब जैसा है।

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कोई पर्दा न था

तुम तो अपने घर के थे तुमसे कोई पर्दा न था लेकिन,
जो दिल की बात थी ज़ालिम वही मुँह से नहीं निकली।

दिल वो है जो

दिल वो है जो फ़रियाद से भरा रहता है हर वक़्त,
हम वो हैं कि कुछ मुँह से निकलने नहीं देते।

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लोग जब ख़ुदा हो जाएँ

इस से पहले कि बेवफ़ा हो जाएँ,
क्यूँ न ए दोस्त हम जुदा हो जाएँ,
तू भी हीरे से बन गया पत्थर,
हम भी कल जाने क्या से क्या हो जाएँ,
हम भी मजबूरियों का उज़्र करें,
फिर कहीं और मुब्तिला हो जाएँ,
अब के गर तू मिले तो हम तुझसे,
ऐसे लिपटें तेरी क़बा हो जाएँ,
बंदगी हमने छोड़ दी फ़राज़,
क्या करें लोग जब ख़ुदा हो जाएँ।