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सैड शायरी
हाथ मेरे भूल बैठे
परवीन शाकिरहाथ मेरे भूल बैठे दस्तकें देने का फ़न,
बंद मुझ पर जब से उस के घर का दरवाज़ा हुआ।
ठोंकरें ज़हर तो नहीं
एक न एक दिन मैं ढूँढ ही लूंगा तुमको,
ठोंकरें ज़हर तो नहीं कि खा भी ना सकूँ।
बिना मेरे रहेगी कमी
बिना मेरे रह ही जाएगी कोई न कोई कमी,
तुम जिंदगी को जितनी मर्जी सँवार लेना।
थोड़ी मस्ती थोड़ा सा
थोड़ी मस्ती थोड़ा सा ईमान बचा पाया हूँ,
ये क्या कम है मैं अपनी पहचान बचा पाया हूँ,
कुछ उम्मीदें, कुछ सपने, कुछ महकी-महकी यादें,
जीने का मैं इतना ही सामान बचा पाया हूँ।
दिल में लगी वो
दिल में लगी थी वो प्यास जागी है,
आपसे मिलने की आस बाकी है
यूँ आदत न थी ऐसे तड़पने की ऐ खुदा
मेरी कितनी सजा और बाकी है।
तुम्हारे बगैर
तुम्हारे बगैर ये वक़्त, ये दिन और ये रात,
गुजर तो जाते हैं मगर, गुजारे नहीं जाते।
लोग जब ख़ुदा हो जाएँ
अहमद फ़राज़इस से पहले कि बेवफ़ा हो जाएँ,
क्यूँ न ए दोस्त हम जुदा हो जाएँ,
तू भी हीरे से बन गया पत्थर,
हम भी कल जाने क्या से क्या हो जाएँ,
हम भी मजबूरियों का उज़्र करें,
फिर कहीं और मुब्तिला हो जाएँ,
अब के गर तू मिले तो हम तुझसे,
ऐसे लिपटें तेरी क़बा हो जाएँ,
बंदगी हमने छोड़ दी फ़राज़,
क्या करें लोग जब ख़ुदा हो जाएँ।
लोग बदल जाते हैं
तरसते थे जो मिलने को हमसे कभी,
आज वो क्यों मेरे साए से कतराते हैं,
हम भी वही हैं दिल भी वही है,
न जाने क्यों लोग बदल जाते हैं।