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गिला शिकवा शायरी
Aayine Ki Tarah
Aakhir Tum Bhi Uss Aayine Ki Tarah Hi Nikle,
Jo Bhi Saamne Aaya Tum Usi Ke Ho Gaye.
आख़िर तुम भी उस आइने की तरह ही निकले,
जो भी सामने आया तुम उसी के हो गए।
किस बात की शिकायत
जाने किस बात की उनको शिकायत है मुझसे,
नाम तक जिनका नहीं है मेरे अफ़साने में।
मायूसी के लम्हे
वो मायूसी के लम्हों में ज़रा भी हौसला देता,
तो हम कागज़ की कश्ती पे समंदर में उतर जाते।
उस शख्स से फ़क़त
उस शख्स से फ़क़त इतना सा तालुक है मेरा,
वो परेशान होता है तो मुझे नींद नही आती है।
अगर वो पूछ लें
अगर वो पूछ लें हमसे
कहो किस बात का ग़म है,
तो फिर किस बात का ग़म है,
अगर वो पूछ लें हमसे।
अब ना कोई शिकवा
अब ना कोई शिकवा,
ना गिला,
ना कोई मलाल रहा,
सितम तेरे भी बे-हिसाब रहे,
सब्र मेरा भी कमाल रहा।
बहुत मसरूफ शायरी
बहुत मसरूफ हो शायद जो हम को भूल बैठे हो,
न ये पूछा कहाँ पे हो न यह जाना के कैसे हो।
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क्यूँ करते हो मेरे दिल पर इतना सितम?
याद करते नहीं, तो याद आते ही क्यूँ हो।
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ना तुम बुरे सनम, ना हम बुरे सनम,
कुछ किस्मत बुरी है और कुछ वक्त बुरा है।
Tum Khoyi-Khoyi Rehti Ho
Tum Kyun Aise Khoye-Khoye Se Rahete Ho?
Tum Kyun Aise GumSum Se Raheti Ho?
Kaun Sa Gham Hai Tumhe Jo Sabse Chhipate Ho?
Kisliye Har Baat Par Apna Jee Jalate Ho?
Kyun Aaj Tak Tumne Kisi Ko Apna Banaya Nahi?
Kyun Tumhe Kisi Ne Hasna Sikhaya Nahi?
तुम क्यों ऐसे खोये खोये रहते हो,
तुम क्यों ऐसे गुमसुम से रहते हो,
कौन सा ग़म है तुम्हें जो सबसे छिपाते हो,
किसलिए हर बात पर अपना जी जलाते हो,
क्यों आज तक तुमने किसी को अपना बनाया नहीं,
क्यों तुम्हें किसी ने हँसना सिखाया नहीं।