हिंदी उर्दू ग़ज़ल

Bahut Din Baad Muskuraye

बहुत दिन बाद शायद हम मुस्कुराये होंगे,
वो भी अपने हुस्न पर खूब इतराये होंगे।

संभलते-संभलते अब तक ना संभले हम,
सोचो किस तरह उनसे हम टकराये होंगे।

महक कोई आई है आँगन में कहीं से उड़कर
शायद उन्होंने गेसू अपने हवा में लहराये होंगे।

पीछे से तपाक से भर लिया बाँहों में उन्हें,
वस्ल के वक्त वो बहुत घबराये होंगे।

जब एक-दूसरे से बिछड़े होंगे वो दो पंछी
बहुत कतराते कतराते पंख उन्होंने फहराये होंगे।

जानते हो क्या इस ख़ुश-रू शख्स को,
पहचान कर भी कहना पड़ा नहीं वो कोई पराये होंगे।

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Farishte Bhi Ab Yahan

फरिश्ते भी अब कहाँ जख्मों का इलाज करते हैं,
बस तसल्ली देते है कि अब करते है, आज करते है।

उनसे बिछड़कर हमको तो मिल गयी सल्तनत-ए-गजल,
चलो नाम उनके हम भी जमाने के तख्तों-ताज करते है।

नए चेहरों में अब पहली सी कशिश कहाँ है बाकी,
अब तो बस पुरानी तस्वीर देखकर ही रियाज करते है।

और एक दिन चचा "मीर" ने आकर ख्वाब में हमसे ये कहा,
शायरी करो "रोशन" यहाँ बस शायरों का लिहाज करते है।

~ रोशन सैनी

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Apni Zindagi Tamaam Kar Di

हमने तो अपनी ज़िन्दगी तमाम कर दी,
अपनी तो हर साँस उनके नाम कर दी।

सोचा था कि कभी तो गुजरेगी रात काली,
पर उसने तो सुबह होते ही शाम कर दी।

समझ पाते हम मोहब्बत की सरगम को,
उसने सुरों की महफ़िल सुनसान कर दी।

कर लिया यक़ीन हमने भी उसके वादों पे,
मगर उसने तो बेरुखी हमारे नाम कर दी।

हम मनाते रहे ग़म अपनी मात पर चुपचाप,
मगर उसने तो मेरी चर्चा सरे-आम कर दी।

ये खुदगर्ज़ी ही आदमी की दुश्मन है "मिश्र",
जिसने इंसान की नीयत ही नीलाम कर दी।

Kabhi Akele Mein Milkar

कभी अकेले में मिलकर झंझोड़ दूंगा उसे,
जहाँ जहाँ से वो टूटा है जोड़ दूंगा उसे।

मुझे छोड़ गया ये कमाल है उसका,
इरादा मैंने किया था कि छोड़ दूंगा उसे।

पसीने बांटता फिरता है हर तरफ सूरज,
कभी जो हाथ लगा तो निचोड़ दूंगा उसे।

मज़ा चखा के ही माना हूँ मैं भी दुनिया को,
समझ रही थी कि ऐसे ही छोड़ दूंगा उसे।

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Rang Bikhre Mohabbat Ke

रंग बिखरे थे कितने मोहब्बत के थे वो,
इक वो ही था जो कितना बेरंग निकला।

मैं ही वो शबनम थी जिसने चमन को सींचा,
मुझे ही छोड़ कर वो बारिश में भीगने निकला।

मेरा वजूद है तो रोशन है तेरे घर के दिये,
मैंने देखा था तू कितना बेरहम निकला।

न जाने कहाँ हर्फे वफ़ा गम होके रह गई,
सरे राह मेरी मोहब्बत का जनाज़ा निकला।

दिल है खामोश उदासी फिजा में छाई है,
मुद्दतें बीती बहारों का काफिला निकला।

टूटे हुए ख्वाब और सिसकती सदाओं ने कहा,
करने बर्बाद मुझे मेरे घर का रहनुमा निकला।

~अंजुम सिराज

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Chupchap Dasaa Karte Hain

लोगों के दिल कहाँ, अब तो होंठ हँसा करते हैं,
खुशियों की जगह अब, कोहराम बसा करते हैं!

भला वो बात अब कहाँ जो कभी पहले थी यारो,
लोग उल्फ़त नहीं अब, नफ़रत का नशा करते हैं!

जिधर नज़र जाती है दिखती हैं मक्कारियां उधर,
यहाँ दाग़ियों के बदले अब, बेदाग़ फंसा करते हैं!

न होइए खुश इतना पाकर हमदर्दियां किसी की,
यही वो मेहरवां हैं जो, कहीं भी तंज कसा करते हैं!

न पिलाओ दूध उनको कभी अपने न होंगे "मिश्र",
यही तो ताक कर अवसर, चुपचाप डसा करते हैं!

Log Samajh Lete Hain

अंधेरों को भी लोग, उजाला समझ लेते हैं,
शातिरों को वो, अपना सहारा समझ लेते हैं।

मैं आज तक न समझ पाया खुद को यारो,
लोग हैं कि खुद को, क्या क्या समझ लेते हैं।

क़त्ल करते हैं बड़ी ही मासूमियत से वो,
पर लोग हैं कि उनको बेचारा समझ लेते हैं।

थमा रखी है पतवार फरेबियों के हाथों में,
लोग हैं कि भंवर को, किनारा समझ लेते हैं।

कपट की चाल ही तोड़ती है रिश्तों को "मिश्र",
लोग तो इसको ही, अपनी अदा समझ लेते हैं।

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Bheeg Jaya Kar

खुद को इतना भी मत बचाया कर,
बारिशें हो तो भीग जाया कर,
चाँद लाकर कोई नहीं देगा,
अपने चेहरे से जगमगाया कर,
दर्द आँखों से मत बहाया कर,
काम ले कुछ हसीन होंठो से,
बातों-बातों में मुस्कुराया कर,
धूप मायूस लौट जाती है,
छत पे किसी बहाने आया कर,
कौन कहता है दिल मिलाने को,
कम-से-कम हाथ तो मिलाया कर।